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Wednesday, March 17, 2010

तेरी ही तलाश


आड़ी तिरछी रेखाओं में तुम्हें ही खीचने की कोशिश,
टूटे बिखरे शब्दों में तुम्हें ही समेटने का प्रयास,

दिल की बेडौल शख़्त चट्‍टानों में तुम्हें ही तराशने की ज़िद,
हर पल, हर क़तरे, हर टुकड़े में करता बस तेरी ही तलाश,

यूं तो बुने हैं कल्पनाओं के कितने ही पुलिन्दे,
पर हर पन्ने-पन्ने पे बिखरा बस तेरा ही ख़याल,

हवा की हर हिलोर, जैसे बिखरा हो तेरा ही स्पर्श, या जैसे
बरसाती हवाओं में उड़ती छतरी से जूझती तेरी कमसिन सी क़शिश

पहली बारिश की सौंधियाई मिट्टी में तेरी ही यादों की महक,
और हर ख़्वाब हर स्वप्न में सजते बस तेरी ही स्मृतियों के मंज़र,

बारिश की हर बूँद में तेरे ही संग भीगने की ख़्वाहिश,
पलकों की हर झपक में बस तेरी ही झलकियों की चाहत,

चंचल लहरों की कल-कल में खोजता तेरी ही खिलखिलाहट,
ढूंढ़ता हूं, सन्नाटों की साँ-साँ तोड़ तेरे ही चले आने की आहट,

यूं तो मैं जानता हूँ ऐ अजनबी तू यहीं है, यहीं कहीं है...
फिर भी, हर लम्हा, हर क़तरे, हर टुकड़े में.. तेरी ही...बस तेरी ही तलाश... 

2 comments:

Rajesh Pala said...

Beautiful as your Heart.....Kuddus Pushkar...

Pushkar said...

Thanks so much Rajesh!