किसी चमचमाती मन्ज़िल की
चाहत नहीं मुझे...
उपलब्धियों के जगमगाते टुकड़े
भी मुझे नहीं लुभाते...
ख़्वाहिश नहीं की मेरा नाम
उकेरा जाए इतिहास के किन्ही पत्थरों पर...
और नाही जीतना चाहता हूं मैं
स्वामित्व के ये ऊँचे खोखले पहाड़...
मैं तो बस एक राही हूं
चाहत है महज एक रास्ते की...
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
bahut khoob !
bahot acchi kavitae likhi hai aap ne..
Thanks a lot pallavi!
Post a Comment